Rajasthan Vidhansabha Chunav: राजस्थान के साथ ही पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो गया है। राजस्थान में 23 नवंबर को मतदान की तारीख तय की गई है। 23 नवंबर को एक चरण में राजस्थान की सभी 200 सीटों पर एकसाथ मतदान करवाया जाएगा। इसके बाद 3 दिसंबर को इन चुनावों के रिजल्ट जारी किए जाएंगे। ऐसे में राज्य की कुछ विधानसभा सीटें ऐसी हैं जिनके परिणामों पर सभी की निगाहें टिकी होंगी। आइये जानते हैं राजस्थान की 15 हॉट सीटों के बारे में जिनपर वर्तमान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के साथ राज्य के कई बड़े धुरंधरों की साख दांव पर है।
सरदारपुरा
जोधपुर जिले की यह सीट कांग्रेस का गढ़ मानी जाती है। यहां से अशोक गहलोत चुनाव लड़ते हैं। इस सीट पर गहलोत 1999 से लगातार जीतते चले आ रहे हैं। 2018 में हुए विधानसभा चुनावों में अशोक गहलोत ने इस सीट पर एक बड़ा रिकॉर्ड भी बना दिया था। 2028 में यहां हुए चुनावों में अशोक गहलोत को कुल 63 फीसदी वोट मिल गए थे। ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि सीएम गहलोत एक बार फिर इस सीट से अपनी किस्मत आजमाने के लिए मैदान में उतरेंगे।
झालरापाटन
जिस तरह सरदारपुरा कांग्रेस का गढ़ मानी जाती है, ठीक उसी तरह झालरापाटन भारतीय जनता पार्टी का गढ़ मानी जाती है। इस सीट का राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे 2003 से लगातार प्रतिनिधित्व कर रही हैं। 2018 में हुए विधानसभा चुनावों में वसुंधरा राजे ने पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह के बेटे मानवेंद्र सिंह जसोल को लगभग 35 हजार वोटों के अंतर से हराया था।
टोंक
राजस्थान में कांग्रेस का दूसरा सबसे बड़ा गढ़ मानी जाती है टोंक विधानसभा सीट। इस सीट से राजस्थान के पूर्व डिप्टी सचिन पायलट ने जीत दर्ज की थी। ऐसा माना जा रहा है कि एक बार फिर सचिन पायलट इस सीट से चुनावी मैदान में उतर सकते हैं। इस विधानसभा क्षेत्र में गुर्जर, अनुसूचित जाति और मुस्लिम मतदाताओं का अनुपात अधिक है।
लक्ष्मणगढ़
भाजपा इस सीट पर सिर्फ एक बार 2003 में जीती है। कांग्रेस की प्रदेश इकाई के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा 2008 से इस सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
झुंझुनू
जाट नेता शीशराम ओला ने तीन बार इस सीट का प्रतिनिधित्व किया, और उनके बेटे बृजेंद्र ओला 2008 से यहां जीत रहे हैं। राजस्थान के पहले विधानसभा अध्यक्ष नरोत्तम लाल यहीं से थे। विधानसभा की पूर्व अध्यक्ष सुमित्रा सिंह यहां से छह बार निर्वाचित हुईं, जिनमें से चार बार उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की।
चुरू
राजस्थान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने 1990 के बाद भाजपा के इस गढ़ का छह बार प्रतिनिधित्व किया है। कांग्रेस नेता डोटासरा का दावा है कि इस निर्वाचन क्षेत्र में जनता का मिजाज बदल गया है, और उन्होंने राठौड़ को चुनौती दी है कि वे यहां से फिर चुनाव लड़ें।
उदयपुरवाटी
हाल ही में अशोक गहलोत मंत्रिमंडल से बर्खास्त किए गए राजेंद्र गुढ़ा ने 2008 और 2018 में बसपा के टिकट पर यह सीट जीती थी, लेकिन दोनों ही बार वह कांग्रेस में चले गए। गुढ़ा का दावा है कि उनके पास गहलोत के ‘भ्रष्टाचार के विवरण वाली लाल डायरी’ है। गुढ़ा हाल में एकनाथ शिंदे नीत शिवसेना में शामिल हो गए।
कोटा उत्तर
1993 से यह सीट बारी-बारी से भाजपा और कांग्रेस जीतती रही है। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने 2003 में इस सीट पर जीत दर्ज की थी। राजस्थान के मंत्री और वर्तमान विधायक शांति धारीवाल इस निर्वाचन क्षेत्र से हैं, और वह चाहते हैं कि इस बार उनके बेटे को यहां से कांग्रेस का टिकट दिया जाए।
अंता
राजस्थान के खान मंत्री प्रमोद जैन भाया इस निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। लेकिन अगर कांग्रेस ने उन्हें फिर से प्रत्याशी बनाया तो उन्हें अपनी ही पार्टी के भरत सिंह कुंदनपुर से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।
उदयपुर
गुलाब चंद कटारिया इस साल की शुरुआत में असम के राज्यपाल नियुक्त किए गए, जिससे यह सीट खाली हुई। कटारिया छह बार यहां से विधायक रहे। ऐसी अटकलें हैं कि भाजपा अब यहां पूर्व मेवाड़ राजपरिवार के किसी सदस्य को चुनाव मैदान में उतार सकती है।
खाजूवाला
चर्चा है कि इस सीट पर दलित नेता और राजस्थान के मंत्री गोविंद राम मेघवाल तथा केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल के बीच मुकाबला हो सकता है।
पोकरण
यहां अक्सर चुनाव धार्मिक आधार पर लड़े जाते हैं। मुस्लिम धर्मगुरु गाजी फकीर के बेटे सालेह मोहम्मद ने 2018 में हिंदू संत और भाजपा उम्मीदवार प्रताप पुरी को हराया था। दोनों का एक दूसरे से फिर से आमना-सामना होने की संभावना है।
बीकानेर पश्चिम
शिक्षा मंत्री बी डी कल्ला इस सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन मुख्यमंत्री गहलोत के ओएसडी लोकेश शर्मा लगातार दौरा कर रहे हैं और पार्टी के टिकट के दावेदार हो सकते हैं।
खींवसर
राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) के प्रमुख और सांसद हनुमान बेनीवाल जाटों के गढ़ नागौर में स्थित इस सीट से चुनाव लड़ सकते हैं। वहीं, कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुईं नागौर की पूर्व सांसद ज्योति मिर्धा को उनके खिलाफ चुनाव मैदान में उतारा जा सकता है।
ओसियां
सचिन पायलट समर्थक दिव्या मदेरणा यहां से पहली बार की कांग्रेस विधायक हैं। लेकिन आरएलपी के बेनीवाल यहां कई रैली कर चुके हैं और उनकी पार्टी उनके लिए चुनौती खड़ी कर सकती है।